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शुक्रवार, 17 जून 2011

मिथिला दर्शन भाग - ७

सुपौल -
मिथिला में कोशी के अनुपम छटा के लेल जानल जाए बाला जिला छल सुपौल। एही जिला के महत्ता इहो लेल बेसी अछि कियाकि एकर सीमा नेपाल से सटल ये। बिहार आ नेपाल के सीमा पर बनल कोशी बराज एतोका मुख्या आकर्षक ये ५२टा फाटक बला एही बांध के निर्माण से सुपौल जिला में बाढ़ से रहत भेटल ये। मुदा ई बांध ई नज़र अलोकिक ये कल-कल, छल-छल बहैत जखन अहाँ कोशी के धार के देखब ते अहाँक करेज हिल जाएत पानी से धार एहन रहय छल की अगर एकटा अहाँ घड़ा के ऊपर से फेकू ते ओ पानी के छुएत ही टूटी जाएत। हिन्दू धर्म के अनुसार ई इलाका मत्स्य क्षेत्र छल। एहिठाम बोध के काल में दू टा राजा के राज्य के साक्ष्य सेहो भेटल ये

इतिहास -
सुपौल जिला के इतिहास बड़ पुरान छल, बोध काल आ महाभारत काल में भी एही जिला के किछु साक्ष्य भेटल ये
। एतोका इतिहास के बारे में याह से पता लगाय सकय छी की एतोका एकटा स्कूल छल विलियम हाई स्कूल जे ११२ साल पुरान छल। एतोका नवोदय विद्यालय कैकटा विद्वान आ पैघ लोग के निर्माण कैलक ये। एतोका एकटा क्लब १०० साल पुरान अछि। कुल मिलाके ई कहि सकय छी की वैदिक युग से ही एही जिला के अस्तित्व ये

भूगोल -
सहरसा जिला से कटि के बनल एही जिला के स्थापना १९९१ में भेल छल। पहिने सुपौल एकटा अनुमंडल छल आ कोशी प्रमंडल के अंतर्गत आबए छल। मुदा १९९१ में ई अपन स्वतंत्र जिला के रूप में अस्तित्व में आएल। सुपौल जिला के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में सहरसा, पूरब में अररिया आ पश्चिम में मधुबनी जिला छल। जिला के कुल क्षेत्रफल २४१० वर्ग किलोमीटर छल। एतोका औसत तापमान ३१ डीग्री सेल्सियस आ औसत वर्षा ११०० से १३०० मिलीमीटर अछि। वैदिक काल में मत्स्य क्षेत्र के रूप में जानल जाय बला एही जिला में पानी के मात्र भरपूर छल। एतोका माटि कतोs कतोs जलोढ़, चिकनी आ कतोs कतोs बलुआही माटि देखय लए भेट जाएत। कोशी एतोका मुख्या नदी अछि आ तिलयुगा, छैमरा, काली, तिलावे, भेंगा, मिरचैया, आ सुरसर एकर सहायक नदी छल

जनसँख्या आ शिक्षा -
२०११ के जनसँख्या के अनुसार एतोका आबादी २२२८३९७ छल जाही में पुरुष के संख्या ११५७८०९ आ महिला के संख्या १०७०५८२ छल। साक्षरता के प्रतिशत ४७.12 प्रतिशत छल जाही में पुरुष के प्रतिशत ३०.१९%  आ महिला के प्रतिशत १८.०९% छल


प्रशासनिक विभाग -

पुरनिया जिला में कुल चारि टा अनुमंडल, ग्यारह टा प्रखंड, आ ५५४ टा गाँव छल
अनुमंडल - सुपौल, निर्मल्ली,बीरपुर आ त्रिवेणीगंज

प्रखंड - निर्मल्ली, मरौना, सुपौल, किशनपुर, सरीग्रह, पिपरा, बसंतपुर, राघोपुर, प्रतापगंज, त्रिवेणीगंज, आ छतरपुर
प्रमुख नदी - कोशी,तिलयुगा, छैमरा, काली, तिलावे, भेंगा, मिरचैया, आ सुरसर नदी छल

पर्यटन स्थल -

कोशी बराज - भारत नेपाल सीमा के एक तरह से विभाजित करैत ई बराज सुपौल जिला आ समस्त उत्तर भारत के लोगेन के लेल जे कोशी के दंश से परेशान रहैत रहे हुनका लेल वरदान के काज करलक। सुपौल जिला के एही बांध से बड़ राहत ते भेटबे करलक संगे कृषि के क्षेत्र में भी बहुत रास सहायता भेटल। एही बांध के निर्माण १९५८ से १९६२ के बीच कएल गेल छल

कपिलेश्वर मंदिर -
हनुमान मंदिर -
कोशी रेल महासेतु -
पब्लिक लाइब्रेरी -

एही चारो के बारे में किनको जानकारी होए ते सूचित करब.


गुरुवार, 16 जून 2011

मिथिला दर्शन भाग - ६

पूर्णिया -
उत्तर बिहार में एकटा प्राकृतिक आ जल संपदा से भरपूर जिला छल पूर्णिया। एही जिला के प्राकृतिक सुन्दरता देखे बला ये। गरीब के दार्जलिंग के नाम से प्रसिद्ध ई जिला कैकटा मिथिला के सपूत पैदा करलक ये। पूर्णिया जिला के स्थापना१९५१ में भेल छल। फणीश्वर नाथ रेनू संका बड़का लेखक याह माटि से जनमल ये। कुल मीलाके अहाँ ई कही सकय छी प्रकृति के गोद में बसल कलाकार के जिला छल ई पूर्णिया।

इतिहास -
हिन्दू धर्म के इतिहास में पूर्णिया जिला के महत्व बड़ पैघ अछि। एहन मानल जाय ये की शुरुवात में एही जिला के विस्तार पूरब में अनस आ पश्चिम में पुन्द्रा तक रहे
महाभारत में भी भीम के विजय अभियान के दौरान एही जिला के किछु वर्णन आएल छल
। एहन कहल जाय ये की भीम मुंगेर आ पूर्णिया के किछु जगह पर अपन विजय अभियान के क्रम में आयल रहे। बुद्ध के जीवनकाल से भी एही जिला जुडल ये कियाकि एतोका कुछ जगह से अखनो धैर बुद्ध अवशेष भेटल ये। आज़ादी के लड़ाई में ते एही जिला के खासम-खास योगदान रहे १९४२ के क्रांति में एही जिला के कैकटा वीर सपूत अपन देश के लेल जान कुर्बान के देलक।

भूगोल - 
गरीब के दार्जलिंग के नाम से प्रसिद्द एही जिला के उत्तर में अररिया, दक्षिण में कटिहार आ भागलपुर, पश्चिम में पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर आ बिहार के किशनगंज जिला आ पूरब में सहरसा आ मधेपुरा जिला छल। जिला के कुल क्षेत्रफल ३,२०२ वर्गकिलोमीटर अछि। पूर्णिया जिला में पानी के भरपूर मात्र छल आ हिमालय से निकले बला नदी के कारण हरेक साल एही जिला के भयंकर तबाही के सामना करय ले पड़य ये। एतोका माटि जलोढ़ आ चिक्कैन छल मुदा पश्चिम के किछु भाग में अहाँक बलुआहा माटि देखय ले भेट जाएत। एता औसत वर्षा १२०० मिलीमीटर से १४०० मिलीमीटर तक होए ये। जिला के तापमान ३१ से ४५ डिग्री सेल्सियस तक अछि। पूर्णिया जिला के मुख्य फसल जुट आ केला अछि।


जनसंख्या आ शिक्षा -

२००१ के जनसँख्या के अनुसार पूर्णिया जिला के जनसँख्या २,५४३,९४२ छल जाही में जाही में पुरुष के जनसँख्या १,३२८,४१७ आ १,२१५,५२५ छल। साक्षरता के प्रतिशत एता ३५.१०% छल जाही में पुरुष के प्रतिशत ४५.६३% आ महिला के प्रतिशत २३.४२% छल।

प्रशासनिक विभाग -

पूर्णिया जिला में ४ टा अनुमंडल, १४ टा प्रखंड, २५१ टा पंचायत, १२९६ टा गाँव आ २७ टा पुलिस स्टेशन छल।
अनुमंडल - पूर्णिया, बैसी, बनमनखी, आ धमदाहा छल ।
प्रखंड - पूर्वी पूर्णिया, कृत्यानंद नगर, बनमनखी, कस्वा, अमौर, बैंसी, बैसा, धमदाहा, बरहारा कोठी,  भवारुपौली,नीपुर, दगरुआ, जलालगढ़, आ श्रीनगर छल।
प्रमुख नदी-  एतोका प्रमुख नदी कोशी, महानंदा, सुवारा काली आ कोली नदी छल।

पर्यटन स्थल -

कामाख्या मंदिर - जिला मुख्यालय से १४ किलोमीटर दूर आ तीन टा गाम रहुआ, माज़रा, आ भवानीपुर के सीमान पर बनल माँ कामाख्या के मंदिर हिन्दू के लेल बहुताहीं आस्था के जगह छल। दूर दूर से लोग एता माँ कामाख्या के दर्शन के लेल आबय ये। कहल जाय ये की एता अहाँ माँ कामाख्या से जे मांगब तकरा माँ कामाख्या तुरत्ते पूरा कए दए ये ताहि लेल दूर-दूर से आबय बला भक्त के एता भीड़ लागल रहय ये।

गंगा दार्जलिंग रोड -  ब्रिटिश काल में पूर्णिया से बेगुसराय होएत दार्जलिंग तक एकटा सड़क जाय छल जाकर गंगा दार्जलिंग रोड कहल जाय ये। ब्रिटिश काल के पूर्णिया जे लगभग २५० साल पुरान अछि  में ई रोड प्राकृतिक सुदरता के अभूतपूर्व नज़र से भड़ल छल। ई रोड पूर्णिया के लाइन बाज़ार, ततमा टोली, आता मिल, आ पोलिटेक्निक चौक से जुडैत अछि। सबसे अद्भुत आ आश्चर्य के गोप ई जे एही सड़क पर स्वतंत्रता के पचास साल बादो तक एकटा लकड़ी के पुल छल जे की पूरा भारत में अपना आप में पहिल राष्ट्रीय राजमार्ग पर बनल लकड़ी के पुल छल।

पूरन देवी मंदिर या काली मंदिर - जिला मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर ई मंदिर में माँ काली के एकटा भव्य आ आकर्षक मूर्ति अस्थापित अछि। लोग के लेल अगाध आस्था से भरल एही मंदिर में अहाँ हरेक दिन भीड़ देखि सके छी। दीवाली में एतोका काली-पूजा देखय बला होए ये।

पूर्णिया के बाघनगर - अररिया के दक्षिण पश्चिम में बसल ई गाँव एतिहासी महत्व राखय ये। किछु दिन पहिने एता खुदाई में एकटा गुफा के अन्दर से किछु प्राचीन सिक्का भेटल रहे। संगे एता किछु ईंट सेहो भेटल जे की पुरातत्व के अनुसार काफी पुरान अछि।

बलदियाबारी - जिला के दक्षिण में आ नवाजगढ़ से आधा किलोमीटर दूर एही जगह एतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण अछि। १७५६ में भेल शौकत जंग आ सिराजुदौला के बीच भेल जंग के एही गाम गवाह अछि।

बंदर झुला -  किशनगंज से करीब ३९ किलोमीटर दूर नेपाल के सीमा से सटल एही गाम में पुरातत्व विभाग के तरफ से करल गेल खुदाई में भगवान् विष्णु के एकटा पूर्ण स्वरुप निकलल रहे जे की करिया संगमरमर से बनल अछि। एटोका लोग एही मूर्ति के कन्हैया कहय ये। एहिठाम हरेक साल एही मूर्ति के पास एकटा छोट सनक मेला सेहो लगय ये।

बरहरा कोठी -  बरहरा कोठी प्रखंड मुख्यालय छल, एकर नाम कोठी एही लेल पड़ल कियाकि ब्रिटिश के जमाना में एता एकटा अंग्रेज के कोठी रहे। एता एकटा शंकर भगवन के प्रसिद्द मंदिर सेहो छल। एही मंदिर के भगवान् के नाम बाबा बरनेश्वर छैथ। दक्षिण मुख्यालय से ई जगह २ किलोमीटर दूर अछि।

कमलपुर - बरहरा कोठी प्रखंड के अंतर्गत आबय बाला ई गाँव अपन नाम कए चरितार्थ करैत छैथ। एही गाँव में कोका एक तरह के कमल के एकटा बड़का तलब छल जाही में कोका फुल भरल रहे छैक।

बरीजनगढ़ - बहादुरगंज पुलिस स्टेशन से ८ किलोमीटर दक्षिण में बसल एही गाम में एकटा पुरान किला के अवशेष ये। जेना की नाम से स्पस्ट ये की एही गाम के राजा बरिजन के रहे जे राजा बेनु के भाई रहे। किला के अन्दर एकटा पोखैर सेहो छल।

बथनाहा - ई गाम दू टा मंदिर के लेल प्रसिद्ध अछि एकटा महादेव आ दोसर दुर्गा। दुनु टा मंदिर हिन्दू धर्म के दुनु पैघ भगवान के छल जे गाँव बला के लेल महान आस्था के लिए जानल जाए ये।

बेनुगढ़ - करीब एक एकड़ के क्षेत्र में फैलल एही जगह में एकटा उजड़ल किला छल। ई किला राजा असुर के भाई बेनु के छल। एही किला के भव्यता के अंदाजा एही बात से लागायल जाय सकय ये की एक एकड़ में अखनो धैर एकर जीर्ण शीर्ण अवशेष बचल ये।

चकला - जेना की नाम से सिद्ध होए ये ई गाम बैलगाड़ी, टमटम आ एहने आर गाड़ी जाही में लकड़ी के चक्का उपयोग में आबय ये के निर्माण के लेल प्रसिद्ध अछि। गाम के लोग के मुख्य जीविका के साधन चक्का बनानाय ये। संगे एतोका लोग घी आ मख्खन पे बेसी निर्भर रहय ये।

धरहरा -  जिला के एकदम से पश्चिम में रानीगंज से १९ किलोमीटर दक्षिण में बसल ई गाम महाभारत काल के साक्ष्य ये। कहल जाय ये की एहिठाम अपन भक्त प्रह्लाद आ सनातन धर्म के रक्षा के लेल भगवान विष्णु नरसिंह अवतार लेलक रहे आ राजा हरिनाकश्यप के वध केलक रहे। एहिठाम एकटा इंडिगो के कारखाना आ एकटा पुराना किला सेहो छल ई पुराना किला के सतलगढ़ के किला कहल जाय ये।

फारबिसगंज -
भट्टा बाज़ार के बाद ई जगह पूरा पूर्णिया जिला के सबसे पैघ बाज़ार अछि। व्यवसायी के गढ़ एही जगह में कैकटा बड़ा-बड़ा व्यावसायिक केंद्र छैक। एही जगह हरेक साल नवम्बर आ दिसम्बर में एता एकटा भव्य मेला लागय ये। संगही एता एकटा प्रसिद्ध पोखैर सेहो छल जे सुल्तानपोखैर के नाम से जानल जाय ये।

जलालगढ़ - जिला मुख्यालय से १३ किलोमीटर उत्तर में बसल ई गाँव एकटा जीर्ण शीर्ण आ उजड़ल किला के लेल जानल जाय ये। कोशी के कछार पर बसल एही किला के दिवार के बनावट एहन ये की ई नेपाल से आबय बाला दुश्मन से एकर रक्षा करैत छल। खगरा राज परिवार के पहिल राजा सैयद मोह्हमद जलालुद्दीन के लेल बनायल एही किला के सुन्दरता ओ समय में केहन हेता एकर वर्णन अहाँ अखुनका किला देख के लगाय सके छिये। अपना आप में वास्तुकला के एकटा अद्भुत नज़ारा पेश करय ये ई किला।

किशनगंज - एही जगह के साक्ष्य महाभारत काल में देखय ले भेट जाएत, एहन कहल जाए ये की अपन विजय यात्रा के क्रम में भीम एही जगह पर आएल रहे आ ओतोका शक्तिशाली राजा कर्ण आ मोददिरी के युध्य में हराय के राजा पुनद्रस के दए देलक रहे। एहनो मान्यता ये की महाभारत में पांडव के १२ बरस के अग्यात्वास में ओ राजा बिराट के कहल पर किछु दिन एता बितेलक रहे। एहिठाम ठाकुरगंज के पास एकटा बड़का सनक तालाब छल जकरा भटड़ला कहल जाये ये छल कहल जाय ये की एही तालाब के उपयोग पांडव के धर्मपत्नी द्रोपदी करैत रहे। किशनगंज से मात्र ७-८ किलोमीटर दूर राजा बिराट के जन्स्थल सेहो छल जाकर किचकाबाढ़ के नाम से जानल जाय छल एहिठाम बरौनी स्नान के काल में एकटा भयंकर मेला सेहो लागय छल।

कुरसेला - कुरसेला कुरु+शिला के अपभ्रंश छल जकर मतलब होए ये पहाड़ी क्षेत्र जे राजा कुरु के राज्य क्षेत्र में पड़य ये। एता से मात्र ६ किलोमीटर दूर एकटा पहाड़ी क्षेत्र छल जेकरा बटेश्वर पहाड़ी कहल जाय ये एता एकटा शंकर भगवन के मंदिर सेहो छल। विक्रमशिला विश्वविद्यालय के किछु हिस्सा एही पहाड़ी से सटल ये।
कुरसेला क्षेत्र यहो ले प्रसिद्ध अछि कियाकि ई जगह मशहूर चित्रकार श्री अवधेश कुमार सिंह(एम्.पी.) के जन्मस्थान सेहो छल। राधाकृष्णन के समय में हिनकर पेंटिंग के प्रदर्शनी दिल्ली में लागल रहे। श्री सिंह एकटा पैघ चित्रकार के साथ-साथ बड़का समाजसेवी आ दानी सेहो रहे बिनोवा भावे के चालायल भूदान आन्दोलन में इ अपन करीब ४,००० एकड़ जमीन दान कए देलक रहे। श्री सिंह के देहानवास १९५८ में भए गेल। तकर बाद एकर जवान बेटा दिनेश कुमार सिंह केंद्र में मंत्री रहल आ बिहार के विकाश में अहम् योगदान देलक हुनकर योगदान के बिहार आ कुरसेला के लोग कहियो नै बिसरत।

लालबाबू - १४ किलोमीटर मैदान के अंत में बनल एकटा ईदगाह मुश्लिम लोग के लिए अगाध आस्था के जगह ये। हरेक ईद आ बकरीद के दिन एता मुसलमान के जमावड़ा लागय ये आ बहुत पैघ संख्या में लोग नमाज़ अदा करय ये। एही जगह १८५७ के विद्रोह में ११ दिसम्बर १८५७ के भागलपुर के कमिश्नर युल के संग एतोका लोग के साथ भयानक जुद्ध भेल रहे।

मदनपुर - अररिया से १० किलोमीटर ई गाम में शंकर भगवान् के एकटा मंदिर छल एही मंदिर के महादेव के भगवान् मदनेश्वर कहल जाए ये, हरेक शिवरात्रि में एता बड़का मेला लागय ये जाहि में दूर-दूर से भक्त सब आबय ये।

मनिहारी -  ई गाम के किस्सा महाभारत काल से जुडल ये एहन कहल जाय ये की महाभारत के समय में भगवान् कृष्ण के एकटा कीमती मणी( एकटा आभूषण में उपयोग आबय बाला रत्ना) एता हराए गेल रहे ताहि से एकर नाम मनिहारी यानि मणी हराए गेल पड़ि गेल। एहिठाम राजा बिराट के जमाना के एकटा गौशाला सेहो छल जाही में एता कला पत्थर से शंकर भगवान् के शिवलिंग बनल ये।

सरसी - जिला मुख्यालय से २९ किलोमीटर उत्तर में बसल ई गाँव में शंकर भगवान् के एकटा मंदिर आ एकटा ईदगाह छल। एहिठाम इंडिगो प्लान्टर के एकटा उजडल कोठी सेहो छल। ई कोठी अपन जमाना में यूरोपियन के लेल एकटा प्रसिद्ध कोटि रहे।

ठाकुरगंज - एहिठाम महाभारत काल के राजा बिराट के महल के किछु पत्थर भेटल रहे एहन कहल जाए ये की असली बिराटनगर याह छल नै की नेपाल बला(एहन भ्रान्ति छल), महाभारत के पांडव के अज्ञातवास के काल में राजा बिराट पांचो पांडव के अपन महल में शरण देलक रहे। एही गाम ई बात के निशानी छल।

आदमपुर - एही जगह पर एकटा दुर्गा माता के विशाल मंदिर छल। नवरात्री के दिन एता पैघ मेला लागय ये। दूर-दूर से लोग एता आबय ये आ माँ के पूजा करय ये। एहन कहल जाए ये की एता मांगल मनोकामना तुरन्त माँ पूरा कए दए ये।

सोमवार, 13 जून 2011

मिथिला दर्शन भाग - ५

पश्चिमी चंपारण -

बिहार के तिरहुत प्रमंडल में बसल ई जिला मिथिला क्षेत्र में आबय ये एहिठाम भोजपुरी भाषा के खास पकड़ ये तखनो ई क्षेत्र मिथिला के कहाबै ये
। चंपारण जिला के अर्थ एकर नामे से पता चलि जाए ये चंपा-अरण्य = मने चंपा के पेड़ से घिरल जंगल। एही जिला के मुख्यालय बेतिया ये। बिहार के ई जिला अपन भोगोलिक विशेषता आ इतिहास के लेल खास प्रसिद्ध अछि। याह ओ जिला ये जतय से महत्मा गाँधी अपन सत्याग्रह शुरू कैलक रहे। एही जिला में महत्व यहो लेल बेसी ये कियाकि एही जिला के पाँच टा ब्लाक से अंतररास्ट्रीय सीमा खुलय ये।

इतिहास -

एही जिला के इतिहास बहुत पुरान अछि एही जिला के बाल्मीकि नगर में जगत जननी माँ सीता के शरणस्थली के रूप में देखल जाए ये जाही से ई पता लागय ये की ई जिला रामायण काल से अस्तित्व में छल। राजा जनक के समय में ई क्षेत्र तिरहुत प्रदेश के अंग रहे जे बाद में वैशाली के हिस्सा बनि गेल। आजातशत्रु के वैशाली जीतलाs के बाद एही पर मोर्य वंश, कण्व वंश, शुंग वंश, कुषाण वंश आ गुप्त वंश के राज रहल। ७५० से ११५५ तक चंपारण पर पाल वंश के राज रहल तकरा बाद एही जिला राजा नरसिंहदेव के हाथ में चलि गेल। तकर किछु दिन बाद ई जिला बंगाल के गयासुद्दीन, फेर गज सिंह, धुरुम सिंह आदि आदि राजा एही पर राज्य करलक। एकर अंतिम राजा हरेन्द्र सिंह के कोनो पुत्र नै होए के कारण जिला के व्यवस्था नाय्यिक सरक्षण में चलि गेल। जे आय धैर चलल आबि रहल ये। अंग्रेज के समय में १८६६ में चंपारण के स्वतंत्र इकाई बना देलक, आ बाद में प्रशासनिक सुविधा के लेल एकरा १९७२ में एकरा बांटी के पूर्वी चंपारण आ पश्चिमी चंपारण कए देल गेल।

भूगोल -

एही जिला के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में गोपालगंज, पूरब में पुर्विचामरण आ पश्चिम में उत्तरप्रदेश के दू टा जिला पडरौना आ देवरिया से जुडैत छैक जिला के क्षेत्रफल ५२२८वर्ग किलोमीटर अछि जे बिहार के सब जिला में सबसे पैघ जिला अछिएही जिला के पाँच टा ब्लाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सेहो जुड़य ये, जाही में बगहा-१, बगहा-२, गौनहा, मैनाटांड, रामनगर, आ सिकटा प्रखंड अछि जेकर करीब ३५ किलोमीटर तक उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व तक नेपाल के साथ सटल ये। एतोका जलवायु आन जिला के मुकाबला में कनिकटा शीतल ये कियाकि एहिठाम हिमालय से एतय सीधा हवा आबय ये। औसत तापमान ४२डीग्री सेल्सियस ये आ औसत वर्षा १४० मिलीमीटर ये

जनसँख्या आ शिक्षा - 
२००१ के जनसँख्या के अनुसार एही जिला के कुल आबादी 
३०,४३,४६६ अछि, जाही में पुरुष के जनसँख्या १६००८३९ आ महिला के जनसंख्या १४४२६२७ ये। जिला में जनसँख्या के प्रतिशत ३९.६३% अछि

प्रशासनिक विभाग -
एही जिला में तीन टा अनुमंडल, १८ टा प्रखंड, ३१५ टा पंचायत आ १४८३ टा गाँव छल
अनुमंडल - बेतिया, बगहा, आ नरकटियागंज
प्रखंड - गौनहा, चनपटिया, जोगापट्टी, ठकराहा, नरकटियागंज, नौतन, पिपरासी, बगहा-१, बगहा-२, बेतिया, बैरिया, भितहा, मधुबनी, मझौलिया, मैनाटांड, रामनगर, लौरिया,आ सिकटा
प्रमुख नदी- सदावाही गंडक, सिकरहना एवं मसान एहिठाम के प्रमुख नहीं छल एकर अलावा पंचानद, मनोर, भापसा, कपन आदि एतोका बरसाती नदी छल

पर्यटन स्थल -

बाल्मिकीनगर राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ अभ्यारण्य - लगभग ८८० वर्ग किलोमीटर में पसरल ई क्षेत्र बिहार के एकमात्र राष्ट्रया उधान छल से नेपाल के राजकीय चितवन नेशनल पार्क से सटल अछि। बेतिया से ८० किलोमीटर दूर बल्मिकिनगर के ई राष्ट्रीय उधान के भीतर ३३५ वर्गकिलोमीटर के हिस्सा में १९९० में देश के १८वा बाघ अभ्यारण बनायल गेल रहेहिरण, चीतल, साँभर, तेंदुआ, नीलगाय, जंगली बिल्ली जेहन जंगली पशु के अलावा एकसिंगी गैडा आऔ‍र जंगली भैंसा भी एही उधान में देखल जाए सकय रहे

बाल्मिकीनगर आश्रम और गंडक परियोजना - बाल्मीकि उधान के एकटा छोड़ पर बसल ई आश्रम के महर्षि बाल्मीकि के आश्रम कहल जाय ये। कहल जाय ये की भगवान राम जखन माँ सीता के त्याग केलखिन रहे ते माता सीता एही आश्रम के शरण लेलक रहे। एहिठाम सीता अपन दू टा बेटा 'लव' आ 'कुश' के जन्म देलखिन रहे। याह ओ पावन जगह ये जाहिठाम महर्षि बाल्मीकि हिन्दू के महाकाव्य रामायण के रचना कैलक रहे। आश्रम से सटल बिहार के बहुद्देशीय परियोजना गंडक नदी के बांध सेहो ये जतेs बिहार के लेल १५ मेगावाट के बिजली उत्पादन होए ये। एता से निकालल गेल नाहर से चंपारण आ उत्तर-प्रदेश के कैकटा जिला में सिंचाई होए ये। एतोका दृश्य बाद मनमोहक छल, बांध के से गिरैत पानि के कल-कल आवाज बहुत मधुर आ सुखद लागय ये। एहिठाम बेतिया राजा के बनायल शिव-पारवती के मंदिर सेहो देखे बला ये।

त्रिवेणी संगम - बाल्मिकी नगर से पाँच किलोमीटर दूर एक तरफ नेपाल के त्रिवेणी गाम आ दोसर तरफ चंपारण के भैंसालोटन गाम के बीच ई संगम के त्रिवेणी संगम के नाम से जानल जाय ये। एहिठाम गंडक के साथ सोहना आ पंचानंद नदी के मिलन होए ये। श्रीमदभागवतपुराण के अनुसार एहिठाम भगवान विष्णु के प्रिय भक्त 'गज' आ 'ग्राह' के लड़ाई शुरू भेल रहे जकर अंत हाजीपुर के कोनाहरा घाट पर भेल रहे। हरिहर क्षेत्र के जेना ही एता हरेक साल माघ के संक्रांति के दिन बड़ा जबरदस्त मेला लगय ये जेकर भव्यता देखे बला होए ये।

बावनगढी - त्रिवेणी संगम से ८ किलोमीटर दूर बगहा प्रखंड के दरवाबारी गाँव के पास ई गाँव बसल ये जते बावनगढ़ी किला के खँडहर मौजूद छल। जेनाकी नाम से पता लागय ये एही किला में ५२ टा महल रहे। ई जगह तिरपन बाज़ार के नाम से सेहो जानल जाय ये। ई गाँव बावन टा महल आ तिरपन टा बाज़ार के अनोखा समूह छल मुदा सरकार के उदासीनता आ पुरात्तव विभाग के लचर व्यवस्था के कारण एही महल के इतिहास अखनो दबल ये।

भिखना ठोढी - जिला के उत्तर में गौनहा प्रखंड में बसल भिखना टोढी नरकटियागंज-भिखना टोढी रेलखंड के अंतिम स्टेशन अछि। नेपाल के सीमा पर बसल ई छोट सनक जगह अपन प्राकृतिक सुन्दरता के लेल प्रसिद्ध अछि। जाड़ के महिना में एहिठाम हिमालय के उज्जर-उज्जर छोटी आ अन्नपूर्ण श्रेणी साफ़ नज़र आबय ये। एतोका शांत वातावरण के मज़ा इंगलैंड के राजा जार्ज पंचम सेहो लेलक रहे। एहिठाम ब्रिटिश काल के पुरनका बंगला आ ठहरे के जगह कैकटा जगह अछि। अगर एक शब्द में एही जगह के वर्णन करी ते अहाँ कही सकय छि जे ई जगह मिथिला के कश्मीर अछि।

भितहरवा आश्रम - 
गौनहा प्रखंड के भितहरवा गाम में एकटा छोट सनक घर से महात्मा गाँधी अपना चंपारण सत्यागढ़ के शुरवात कैलक रहे। याह घर के आय भीतहरवा आश्रम कहाबै ये। गाँधी के आ स्वतंत्रता के आदर करय बला के लेल ई घर कोनो काशी-काबा से कम नै ये।

रामपुरवा का अशोक स्तंभ  - भीतहरवा आश्रम से कनिकटा दूर रामपुरवा गाम में सम्राट अशोक के बनायल दू टा स्तम्भ ये। दुनु टा स्तम्भ शीर्षरहित अछि। ई स्तम्भ के उपरका सिंह बला हिस्सा कलकत्ता के संग्रहालय में आ वृषभ(सांढ) बला हिस्सा के दिल्ली के संग्रहालय में राखाल गेल ये।
अशोक स्तंभ - नंदनगढ़ के एक किलोमीटर दूर लौरिया प्रखंड में २३०० वर्ष पुरान सिंह के मुंह बला एकटा स्तम्भ अछि जेकरा अशोक स्तम्भ कहल जाय ये। ३५ फीट ऊँचा ई स्तम्भ के आधार ३५ फीट आ कपाड़ २२ इंच अछि। ई विशाल स्तम्भ मौर्या काल के मुर्तिकाल के शानदार कलाकारी के नमूना अछि। एकर बेहतरीन कलाकृति आ जबरदस्त पोलिस एकर सुन्दरता में चार चाँद लगा रहल ये। २३०० साल भेला के बाद भी एही स्तम्भ में अखनो धैर जुंग नै लागल ये जे ई साबित करय ये की प्राचीन काल के कला के पारखी आ कलाकार के तुलना आय नै कराल जाय सकय ये।

सुमेश्वर का किला -  रामनगर प्रखंड में समुन्द्र ताल से २,८८४ फीट के ऊंचाई पर बसल सुमेश्वर के पहाड़ पर खड़ा ढलान पर बनल सुमेश्वर के किला आब खंडहर बनि चुकल ये। नेपाल के सीमा पर बनल ई किला आब खंडहर में ते जरुर बदैल गेल ये मुदा अन्तेपुरवाशी के पानि के जरुँरत के लेल पत्थर के काटि के बनायल कुण्ड के अखनो देखल जाय सकय ये। एता से हिमालय के पर्वत श्रेणी के मनमोहक आ विहंगम दृश्य अहाँ देख सकय छी। एता से हिमालय के प्रसिद्ध धौलागिरि, गोसाईंनाथ एवं गौरीशंकर के धवल शिखर के साफ़ देखल जाय सकय ये।

वृंदावन - बेतिया से १० किलोमीटर दूर ई जगह पर १९३७ में ऑल इंडिया गाँधी सेवा संघ का वार्षिक सम्मेलन भेल रहे। जाही में गाँधी जी सहित राजेंद्र प्रसाद आऔर जे.बी. कृपलानी सेहो हिस्सा लेलक रहे। गांधीजी के शिक्षा पर आधारित एता एकटा बेसिक स्कूल सेहो चल रहल ये।

सरैयां मान (पक्षी विहार) - बेतिया से ६ किलोमीटर दूर सरैयाँ के शांत परिवेश में एता एकटा प्राकृतिक झील बसल ये जे कैकटा प्रवासी पक्षी के प्रवाश जगह अछि। झील के कात में कैकटा जामुन के गाछ लागल ये, कहल जाय ये की जामुन के फल ई झील में खूब गिरय ये जाही से एकर पानि में खूब बेसी पाचक क्षमता ये। ई जगह एतोका स्थानीय लोग के लेल पिकनिक के जगह सेहो अछि।
पश्चिमी चंपारण -
बिहार के तिरहुत प्रमंडल में बसल ई जिला मिथिला क्षेत्र में आबय ये एहिठाम भोजपुरी भाषा के खास पकड़ ये तखनो ई क्षेत्र मिथिला के कहाबै ये
। चंपारण जिला के अर्थ एकर नामे से पता चलि जाए ये चंपा-अरण्य = मने चंपा के पेड़ से घिरल जंगल। एही जिला के मुख्यालय बेतिया ये। बिहार के ई जिला अपन भोगोलिक विशेषता आ इतिहास के लेल खास प्रसिद्ध अछि। याह ओ जिला ये जतय से महत्मा गाँधी अपन सत्याग्रह शुरू कैलक रहे। एही जिला में महत्व यहो लेल बेसी ये कियाकि एही जिला के पाँच टा ब्लाक से अंतररास्ट्रीय सीमा खुलय ये।

इतिहास -

एही जिला के इतिहास बहुत पुरान अछि एही जिला के बाल्मीकि नगर में जगत जननी माँ सीता के शरणस्थली के रूप में देखल जाए ये जाही से ई पता लागय ये की ई जिला रामायण काल से अस्तित्व में छल। राजा जनक के समय में ई क्षेत्र तिरहुत प्रदेश के अंग रहे जे बाद में वैशाली के हिस्सा बनि गेल। आजातशत्रु के वैशाली जीतलाs के बाद एही पर मोर्य वंश, कण्व वंश, शुंग वंश, कुषाण वंश आ गुप्त वंश के राज रहल। ७५० से ११५५ तक चंपारण पर पाल वंश के राज रहल तकरा बाद एही जिला राजा नरसिंहदेव के हाथ में चलि गेल। तकर किछु दिन बाद ई जिला बंगाल के गयासुद्दीन, फेर गज सिंह, धुरुम सिंह आदि आदि राजा एही पर राज्य करलक। एकर अंतिम राजा हरेन्द्र सिंह के कोनो पुत्र नै होए के कारण जिला के व्यवस्था नाय्यिक सरक्षण में चलि गेल। जे आय धैर चलल आबि रहल ये। अंग्रेज के समय में १८६६ में चंपारण के स्वतंत्र इकाई बना देलक, आ बाद में प्रशासनिक सुविधा के लेल एकरा १९७२ में एकरा बांटी के पूर्वी चंपारण आ पश्चिमी चंपारण कए देल गेल।

भूगोल -

एही जिला के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में गोपालगंज, पूरब में पुर्विचामरण आ पश्चिम में उत्तरप्रदेश के दू टा जिला पडरौना आ देवरिया से जुडैत छैक जिला के क्षेत्रफल ५२२८वर्ग किलोमीटर अछि जे बिहार के सब जिला में सबसे पैघ जिला अछिएही जिला के पाँच टा ब्लाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सेहो जुड़य ये, जाही में बगहा-१, बगहा-२, गौनहा, मैनाटांड, रामनगर, आ सिकटा प्रखंड अछि जेकर करीब ३५ किलोमीटर तक उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व तक नेपाल के साथ सटल ये। एतोका जलवायु आन जिला के मुकाबला में कनिकटा शीतल ये कियाकि एहिठाम हिमालय से एतय सीधा हवा आबय ये। औसत तापमान ४२डीग्री सेल्सियस ये आ औसत वर्षा १४० मिलीमीटर ये

जनसँख्या आ शिक्षा - 
२००१ के जनसँख्या के अनुसार एही जिला के कुल आबादी 
३०,४३,४६६ अछि, जाही में पुरुष के जनसँख्या १६००८३९ आ महिला के जनसंख्या १४४२६२७ ये। जिला में जनसँख्या के प्रतिशत ३९.६३% अछि

प्रशासनिक विभाग -
एही जिला में तीन टा अनुमंडल, १८ टा प्रखंड, ३१५ टा पंचायत आ १४८३ टा गाँव छल
अनुमंडल - बेतिया, बगहा, आ नरकटियागंज
प्रखंड - गौनहा, चनपटिया, जोगापट्टी, ठकराहा, नरकटियागंज, नौतन, पिपरासी, बगहा-१, बगहा-२, बेतिया, बैरिया, भितहा, मधुबनी, मझौलिया, मैनाटांड, रामनगर, लौरिया,आ सिकटा
प्रमुख नदी- सदावाही गंडक, सिकरहना एवं मसान एहिठाम के प्रमुख नहीं छल एकर अलावा पंचानद, मनोर, भापसा, कपन आदि एतोका बरसाती नदी छल

पर्यटन स्थल -

बाल्मिकीनगर राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ अभ्यारण्य - लगभग ८८० वर्ग किलोमीटर में पसरल ई क्षेत्र बिहार के एकमात्र राष्ट्रया उधान छल से नेपाल के राजकीय चितवन नेशनल पार्क से सटल अछि। बेतिया से ८० किलोमीटर दूर बल्मिकिनगर के ई राष्ट्रीय उधान के भीतर ३३५ वर्गकिलोमीटर के हिस्सा में १९९० में देश के १८वा बाघ अभ्यारण बनायल गेल रहेहिरण, चीतल, साँभर, तेंदुआ, नीलगाय, जंगली बिल्ली जेहन जंगली पशु के अलावा एकसिंगी गैडा आऔ‍र जंगली भैंसा भी एही उधान में देखल जाए सकय रहे

बाल्मिकीनगर आश्रम और गंडक परियोजना - बाल्मीकि उधान के एकटा छोड़ पर बसल ई आश्रम के महर्षि बाल्मीकि के आश्रम कहल जाय ये। कहल जाय ये की भगवान राम जखन माँ सीता के त्याग केलखिन रहे ते माता सीता एही आश्रम के शरण लेलक रहे। एहिठाम सीता अपन दू टा बेटा 'लव' आ 'कुश' के जन्म देलखिन रहे। याह ओ पावन जगह ये जाहिठाम महर्षि बाल्मीकि हिन्दू के महाकाव्य रामायण के रचना कैलक रहे। आश्रम से सटल बिहार के बहुद्देशीय परियोजना गंडक नदी के बांध सेहो ये जतेs बिहार के लेल १५ मेगावाट के बिजली उत्पादन होए ये। एता से निकालल गेल नाहर से चंपारण आ उत्तर-प्रदेश के कैकटा जिला में सिंचाई होए ये। एतोका दृश्य बाद मनमोहक छल, बांध के से गिरैत पानि के कल-कल आवाज बहुत मधुर आ सुखद लागय ये। एहिठाम बेतिया राजा के बनायल शिव-पारवती के मंदिर सेहो देखे बला ये।

त्रिवेणी संगम - बाल्मिकी नगर से पाँच किलोमीटर दूर एक तरफ नेपाल के त्रिवेणी गाम आ दोसर तरफ चंपारण के भैंसालोटन गाम के बीच ई संगम के त्रिवेणी संगम के नाम से जानल जाय ये। एहिठाम गंडक के साथ सोहना आ पंचानंद नदी के मिलन होए ये। श्रीमदभागवतपुराण के अनुसार एहिठाम भगवान विष्णु के प्रिय भक्त 'गज' आ 'ग्राह' के लड़ाई शुरू भेल रहे जकर अंत हाजीपुर के कोनाहरा घाट पर भेल रहे। हरिहर क्षेत्र के जेना ही एता हरेक साल माघ के संक्रांति के दिन बड़ा जबरदस्त मेला लगय ये जेकर भव्यता देखे बला होए ये।

बावनगढी - त्रिवेणी संगम से ८ किलोमीटर दूर बगहा प्रखंड के दरवाबारी गाँव के पास ई गाँव बसल ये जते बावनगढ़ी किला के खँडहर मौजूद छल। जेनाकी नाम से पता लागय ये एही किला में ५२ टा महल रहे। ई जगह तिरपन बाज़ार के नाम से सेहो जानल जाय ये। ई गाँव बावन टा महल आ तिरपन टा बाज़ार के अनोखा समूह छल मुदा सरकार के उदासीनता आ पुरात्तव विभाग के लचर व्यवस्था के कारण एही महल के इतिहास अखनो दबल ये।

भिखना ठोढी - जिला के उत्तर में गौनहा प्रखंड में बसल भिखना टोढी नरकटियागंज-भिखना टोढी रेलखंड के अंतिम स्टेशन अछि। नेपाल के सीमा पर बसल ई छोट सनक जगह अपन प्राकृतिक सुन्दरता के लेल प्रसिद्ध अछि। जाड़ के महिना में एहिठाम हिमालय के उज्जर-उज्जर छोटी आ अन्नपूर्ण श्रेणी साफ़ नज़र आबय ये। एतोका शांत वातावरण के मज़ा इंगलैंड के राजा जार्ज पंचम सेहो लेलक रहे। एहिठाम ब्रिटिश काल के पुरनका बंगला आ ठहरे के जगह कैकटा जगह अछि। अगर एक शब्द में एही जगह के वर्णन करी ते अहाँ कही सकय छि जे ई जगह मिथिला के कश्मीर अछि।

भितहरवा आश्रम - 
गौनहा प्रखंड के भितहरवा गाम में एकटा छोट सनक घर से महात्मा गाँधी अपना चंपारण सत्यागढ़ के शुरवात कैलक रहे। याह घर के आय भीतहरवा आश्रम कहाबै ये। गाँधी के आ स्वतंत्रता के आदर करय बला के लेल ई घर कोनो काशी-काबा से कम नै ये।

रामपुरवा का स्तंभ  - भीतहरवा आश्रम से कनिकटा दूर रामपुरवा गाम में सम्राट अशोक के बनायल दू टा स्तम्भ ये। दुनु टा स्तम्भ शीर्षरहित अछि। ई स्तम्भ के उपरका सिंह बला हिस्सा कलकत्ता के संग्रहालय में आ वृषभ(सांढ) बला हिस्सा के दिल्ली के संग्रहालय में राखाल गेल ये।
अशोक स्तंभ - नंदनगढ़ के एक किलोमीटर दूर लौरिया प्रखंड में २३०० वर्ष पुरान सिंह के मुंह बला एकटा स्तम्भ अछि जेकरा अशोक स्तम्भ कहल जाय ये। ३५ फीट ऊँचा ई स्तम्भ के आधार ३५ फीट आ कपाड़ २२ इंच अछि। ई विशाल स्तम्भ मौर्या काल के मुर्तिकाल के शानदार कलाकारी के नमूना अछि। एकर बेहतरीन कलाकृति आ जबरदस्त पोलिस एकर सुन्दरता में चार चाँद लगा रहल ये। २३०० साल भेला के बाद भी एही स्तम्भ में अखनो धैर जुंग नै लागल ये जे ई साबित करय ये की प्राचीन काल के कला के पारखी आ कलाकार के तुलना आय नै कराल जाय सकय ये।

सुमेश्वर का किला -  रामनगर प्रखंड में समुन्द्र ताल से २,८८४ फीट के ऊंचाई पर बसल सुमेश्वर के पहाड़ पर खड़ा ढलान पर बनल सुमेश्वर के किला आब खंडहर बनि चुकल ये। नेपाल के सीमा पर बनल ई किला आब खंडहर में ते जरुर बदैल गेल ये मुदा अन्तेपुरवाशी के पानि के जरुँरत के लेल पत्थर के काटि के बनायल कुण्ड के अखनो देखल जाय सकय ये। एता से हिमालय के पर्वत श्रेणी के मनमोहक आ विहंगम दृश्य अहाँ देख सकय छी। एता से हिमालय के प्रसिद्ध धौलागिरि, गोसाईंनाथ एवं गौरीशंकर के धवल शिखर के साफ़ देखल जाय सकय ये।

वृंदावन - बेतिया से १० किलोमीटर दूर ई जगह पर १९३७ में ऑल इंडिया गाँधी सेवा संघ का वार्षिक सम्मेलन भेल रहे। जाही में गाँधी जी सहित राजेंद्र प्रसाद आऔर जे.बी. कृपलानी सेहो हिस्सा लेलक रहे। गांधीजी के शिक्षा पर आधारित एता एकटा बेसिक स्कूल सेहो चल रहल ये।

सरैयां मान (पक्षी विहार) - बेतिया से ६ किलोमीटर दूर सरैयाँ के शांत परिवेश में एता एकटा प्राकृतिक झील बसल ये जे कैकटा प्रवासी पक्षी के प्रवाश जगह अछि। झील के कात में कैकटा जामुन के गाछ लागल ये, कहल जाय ये की जामुन के फल ई झील में खूब गिरय ये जाही से एकर पानि में खूब बेसी पाचक क्षमता ये। ई जगह एतोका स्थानीय लोग के लेल पिकनिक के जगह सेहो अछि।

नंदनगढ़ आर चानकीगढ़ - लौरिया प्रखंड के नंदनगढ़ आ नरकटियागंज प्रखंड के चानकीगढ़ अपना आप में प्राकृतिक सुन्दरता के एकटा अद्भुत उदहारण अछि। एहिठाम नन्द वंश आ चाणक्य के बनायल महल के अवशेष सेहो अछि जे आब टीला जोंक देखाए पड़य ये। एहिठाम बुद्ध के भी बहुत साक्ष्य देखे ले भेट जाएत। एता तक की नंदनगढ़ के टीला का भगवान् बुद्ध के अस्थि अवशेष पर बनल स्तूप सेहो कहल जाए ये।

मिथिला दर्शन भाग - ४

मधुबनी - दरभंगा प्रमंडल के एकटा प्रमुख शहर आ जिला छल मधुबनी। मधुबनी आ दरभंगा के मिथिला संस्कृति के द्विध्रुव मानल जाए ये। एतोका मुख्या भाषा मैथिलि आ हिंदी अछि। विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग आ मखान के लेल ई जिला विश्व भर में जानल जाय ये। एही जिला के गठन १९७२ में दरभंगा के विभाजन के बाद भेल रहे। मधुबनी के नामे सुनि के लागय ये जे एतोका लोग के वाणी बेसी मीठ छल ताहि दुवारे एकर नाम मधु+बानी राखल गेल ये मुदा किछु लोग के कहनाय ये की एहिठाम पहिने मोध(मधु) बहुत बेसी बनय रहे ते दुवारे से एकर नाम मधु-बन पड़ल।

इतिहास - १९७२ में बिहार के अन्य जिला के संगे मधुबनी जिला के निर्माण भेल। पहिने ई दरभंगा जिला के उपखंड रहे विभाजन के बाद ई जिला बनल। एहिठाम प्रगेतिहसिक काल के अवशेष देखे लए भेट जाएत जाही से पता लागैत ये की ई जगह बहुत प्राचीन अछि। एहनो कहल जाए ये की पांडव अपन अज्ञातवास में किछु समय एतो बितेलक रहे। १८५७ के विद्रोह में भी एही जिला अपन बड़ योगदान देलक रहे आ महात्मा गाँधी के खादी के लेल भी एही जिला प्रसिद्द ये एही ठाम के खादी जग प्रसिद्द अछि, मधुबनी जिला के कला के केंद्र कहि सकय छी, कियाकि विश्व प्रसिद्द मिथिला पेंटिंग के जनक एही जिला अछि।

भूगोल - मधुबनी के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में दरभंगा, पूरब में सुपौल आ पश्चिम में सीतामढ़ी जिला छल। जिला के कुल क्षेत्रफल ३५०१ वर्ग किलोमीटर अछि संगही एही जिला भूकंप क्षेत्र के ५ नो. जोन में सेहो पड़य ये। एहिठाम नदी के प्रमुखता अछि आ बरसात के दिन ते बूझिये मधुबनी जिला के लेल काल अछि हरेक साल एही जिला के बाढ़ि के भयंकर तबाही के झेलय ये। पूरा जिला के माटि समतल आ उपजाऊ छल आ एता औसत बारिश १२७३ मिमी होएत अछि।
एहीठाम के प्रमुख नदी कमला, करेह, बलान, भूतही बलान, गेहुंआ, सुपेन, त्रिशुला, जीवछ, कोशी आऔर अधवारा समूह अछि। करीब करीब सबटा नदी बरसाति के दिन अपन भयंकर रूप में रहय अछि आ हरेक साल भयंकर तबाही सेहो आनैत अछि।
प्रशासनिक विभाजन - मधुबनी जिला में ५ टा अनुमंडल, २१ टा प्रखंड, ३९९ टा पंचायत आ ११११ टा गाम अछि
। संगही एही जिला में १८ टा थाना आ २टा जेल सेहो छल। मधुबनी जिला २ टा संसदीय क्षेत्र आ ११ टा विधान सभा क्षेत्र में बटल ये।
अनुमंडल- मधुबनी, बेनीपट्टी, झंझारपुर, जयनगर आ फुलपरास अछि।
प्रखंड- मधुबनी सदर (रहिका),पंडौल, बिस्फी, जयनगर, लदनिया,लौकहा, झंझारपुर, बेनीपट्टी, बासोपट्टी, राजनगर, मधेपुर, अंधराठाढ़ी, बाबूबरही, खुटौना, खजौली, घोघरडीहा, मधवापुर, हरलाखी, लौकही, लखनौर, आ फुलपरास अछि।

जनसँख्या आ शिक्षा -
२००१ के जनसँख्या के अनुसार मधुबनी के जनसंख्या ३,५७५,२८१ अछि
। जाही में पुरुष के जनसँख्या १,८४०,९९७ आ महिला के जनसँख्या १,७३४,२८४ अछि। एहिठाम साक्षरता के प्रतिशत ४१.९७% अछि जाही में पुरुष के प्रतिशत ५६.७९ आ महिला प्रतिशत २६.२५ अछि।


पर्यटन स्थल -

राजनगर  - मधुबनी जिला के लेल एकटा एतिहासिक महत्त्व बला स्थान छल राजनगर। राजनगर के  महाराजा रामेश्वर सिंह बसेलक रहे, पहिने ई दरभंगा के उप-राजधानी सेहो रहे। ओ एहिठाम एकटा विशाल नौलखा मंदिर करेलक रहे मुदा १९३४ में आएल भूकंप के कारण एकरा काफी क्षति पहुंचल। ई महल में एकटा प्रसिद्ध आ जागृत काली देवी के मंदिर सेहो छल। राजनगर, मधुबनी जिला मुख्यालय स करीब ७ किलोमीटर उत्तर में ये। ओना १९३४ के भूकंप स एही ईमारत क काफी क्षति पहुंचल मुदा अखनो धैर ओकर अवसेष एता देखय लए भेट जाएत।

सौराठ -  मधुबनी-जयनगर रोड पर बसल एही गाम में सोमनाथ महादेव के मंदिर छल। ई जगह मिथिलांचल आ मैथिल ब्रह्मण के लेल बड़ महत्वपूर्ण अछि। हरेक साल एता मैथिल ब्रह्मण के सभा लागए ये जाही ठाम सब गोटे के सामूहिक विवाह होए अछि। एही गाम में रहय बला पंजीकार मैथिल ब्रह्मण के वंशावली के रिकार्ड राखय छैक जाही से विवाह में हुनका बड़ सुविधा आ सहयोग भेटय ये।

कपिलेश्वरनाथ - 
मधुबनी से ९ किलोमीटर दूर एही जगह पर हिन्दू के अगाध आस्था के प्रतिक कपिलेश्वर शिव मंदिर अछि। हरेक सोम दिन आ साओन के महिना में एता बड़ भीड़ रहय छैक आ बड़ा भयंकर मेला सेहो लगय ये।

उचैठा - बेनीपट्टी प्रखंड में थुमने नदी के कात बसल ई गाम में माँ भगवती के एकटा विशाल मंदिर अछि। कहल जाए ये की एहिठाम संस्कृत के महाकवि आ विद्वान कालिदास के देवी से आशीर्वाद भेटल रहे।

भवानीपुर - पंडौल प्रखंड मुख्यालय से ५ किलोमीटर दूर एही गाम में उगरनाथ शिव मंदिर अछि। मैथिलि के महान कवी विद्यापति से ई मंदिर जुड़ल ये। एहन कहल जाए ये की विद्यापति शंकर भगवान् के अनन्य भक्त रहे ओ एही मंदिर में शंकर भगवान् के नियमित रूप से पूजा करय रहे जकर बाद ओकर भक्ति से प्रसन्न भए के खुद भगवान् शंकर हुनकर लग उगना के रूप में एला आ हुनकर सेवा केलखिन।

बलिराज गढ़ - जिला मुख्यालय से करीब ३४ किलोमीटर उत्तर-पूर्व में मधुबनी-लौकहा सड़क के कात बसल एही गाम में एकटा प्राचीन किला के भग्नावेश छल जे ३६५ बीघा में पसरल ये। एकर किला के देबार एते मोट ये की जेना लागय ये एही पर होए के कैकटा रथ आराम से गुजैर जाएत हेता। ई जगह भारत के पुरातत्व विभाग के अधीन अछि जाही कारन से एकर किछु कर्मचारी एकर देखभाल करय ये। एता सालाना रामनवमी के अवसर पर चैती दुर्गा के विशाल पूजनोत्सव के आयोजन होए छैक। एहि जगह के दू बेर खुदाई सेहो भेल ये मुदा नीक जोंक खुदाई नै भेला से एतोका इतिहास के बारे में नीक जोंका नै कहल जाए सकय ये ओना किछु लोग के माननाय ये जे बलिराज गढ़ मिथिला के राजधानी भए सकय ये कियाकि जनकपुर के महल सब काफी नया छल। ओना ठीक से किछु नै कहल जाए सकय ये कियाकि बलिराज गढ़ अखनो धैर एकटा व्यापक आ पैघ खुदाई के इन्तेजार में ये।

चामुंडा नगर, पछाही- झंझारपुर रेलवे स्टेशन से १२ किलोमीटर दूर ई गाँव में माँ चामुंडा के एकटा मंदिर छल। झंझारपुर से एता सीधा बस सेवा छल हरेक १० से १५ मिनट के बाद अहाँक एता जाय ले एकटा बस भेट जाएत। एता एकटा माँ चामुंडा आ भगवान् शंकर के मंदिर छल। मंदिर के चारो कात के वातावरण प्रकिर्तिक सुन्दरता के अनुपम छटा से सुसोभित अछि, एही वातावरण पूजा-पाठ, ध्यान आ योग के लेल उपयुक्त अछि। एही मंदिर के आगाँ एकटा तालाब छल जाही में डुबकी लगाए के लोग सभ माँ चामुंडा के पूजा कराय ये। कोजगरा के अगला दिन एता हरेक साल एकटा पैघ मेला लागय ये जेकरा महादेव पूजा कहल जाए ये। एही महादेव पूजा पूरा मधुबनी जिला के लेल प्रसिद्ध मेला अछि। दूर दूर से लोग एही पूजा के देखय ले आबय ये। मंदिर के संरचना एहन ये की सूर्य किरण सीधा गर्भगृह में पहुंचे ये ताहि से ई मंदिर के महत्व आर बढ़ि गेल ये

मिथिला दर्शन भाग - ३

दरभंगा -

उत्तर बिहार में बागमती नदी के कोनटा पर बसल ई जिला मिथिला के लेल एकटा एतिहासिक आ मह्तवपूर्ण जिला अछि। दरभंगा शब्द के अर्थ संस्कृत भाषा के 'द्वार-बंग' या फारसी के भाषा 'दर-ए-बंग' यानी बंगाल के दरवाजा के मैथिली रूपांतरण ये। एहनो कहल जाय ये की मुग़ल काल में एकटा व्यापारी दरभंगी खान एही शहर के बसेलक रहे जाहि कारण से एकर नाम दरभंगा पड़ि गेल। दरभंगा शहर के विकाश सोलहवीं सदी में मुग़ल व्यापारी के ऐनाय से भेल। अपन प्राचीन आ बौधिक परम्परा के लेल एही शहर खूब प्रसिद्ध ये। एकर अलावा प्राचीन भारत के जानल मानल राजा लक्ष्मीश्वर सिंह, ललित नारायण आ कामेश्वर सिंह  के जन्म आ कर्मस्थल सेहो अछि। संगे एहिठाम के आम आ मखान मिथिला के साथ-साथ सोंसे देश में प्रसिद्ध अछि।

इतिहास -

दरभंगा शहर के विवरण महाभारत आ रामायण में भेटैत ये। वैदिक स्त्रोत के अनुसार एही शहर बिहार के सबसे पुरान शहर अछि। दरभंगा शहर १६ वीं सदी में दरभंगा राज के राजधानी छल।१८४५ ईस्वी में ब्रिटिस सरकार दरभंगा के सदर अनुमंडल बनाs देलक आ १७६४ ईस्वी में दरभंगा शहर नगर निकाय बनि गेल।
एही जगह पर पुरातन काल से ही राजा के शासन छल विदेह के राजा मिथि के बाद मगध के राजा मौर्या, शुंग, कण्व, आऔर गुप्त शासक के राज छल, १३वीं सदी में एही पर बंगाल के किछु मुसलमान शासक सेहो राज केलेन। जाही में बंगाल के शासक हाजी शमसुद्दीन इलियास एही क्षेत्र के मिथिला आ तिरहुत क्षेत्र में बाटि देलक
उत्तरी भाग जाही में दरभंगा, मधुबनी, आ समस्तीपुर जिला आयल तकर सत्ता राजा कामेश्वर सिंह के भेटल। तकर बाद राजा देवसिंह, शिवसिंह, पद्मसिंह, हरिसिंह, नरसिंहदेव, धीरसिंह, भैरवसिंह, रामभद्र, लक्ष्मीनाथ, कामसनारायण राजा भेल। एही काल के राजा कलाकार आ विद्वान के बेसी प्राथिमिकता दैत रहे। खास कए के पान, मखान, विद्या, आ मधुर बोल के कारन एही ठाम के एकटा प्रचलित श्लोक अछि,
पग-पग पोखर, पान मखान
सरस बोल, मुस्की मुस्कान
विद्या-वैभव शांति प्रतीक
ललित नगर दरभंगा थिक
अपन गौरवशाली अतीत आ अद्भुत संस्कृति के लेल प्रसिद्ध ई जिला आय राजनितिक कारण से उपेक्षित अछि।

भूगोल -
दरभंगा जिला के क्षेत्रफल २,२७९ वर्ग किलोमीटर अछि। दरभंगा के उत्तर में मधुबनी, दक्षिण में समस्तीपुर, पूरब में सहरसा आ पश्चिम में मुजफ्फरपुर आ सीतामढ़ी जिला ये। सोंसे जिला में समतल आ उपजाऊ जमीन अछि मुदा वनप्रदेश कोनो नै अछि। एही इलाका में हिमालय से बहय बला नदी के अधिकता अछि, एतौका पर्मुख नदी कमला, बागमती, कोशी, करेह आर अधवारा अछि। एही समस्त नदी हरेक साल एता बाढ़ी आनय ये जाही हरेक साल बहुत जान आ माल के हानि होए ये। एही ठाम औसत वर्षा ११४२ से ११४४ मिलीमीटर होए अछि।

जनसँख्या आ शिक्षा -  २००१ के जनगणना के अनुसार एही जिला के कुल जनसँख्या ३२,८५,४९३ छल जाही में शहरी क्षेत्र में २,६६,८३४ आ देहाती क्षेत्र में ३०,१८,६३९ छल। एही ठाम के साक्षरता दर ३५.४२% अछि जाही में पुरुष आ महिला के शिक्षा के प्रतिशत क्रमशः ४५.३२% आ २४.५८% अछि।

प्रशासनिक विभाग -

दरभंगा जिला में ३ टा अनुमंडल, १८ टा प्रखंड, ३२९ पंचायत, १.२६९ गाँव, आ २३ टा थाना छल।

अनुमंडल - दरभंगा सदर, बेरौल, बेनीपुर ।
प्रखंड -  दरभंगा, बहादुरपुर, हयाघाट, हनुमाननगर, बहेरी, केवटी, सिंघवारा, जाले, मणिगाछी, ताराडिह, बेनीपुर, अलीनगर, बिरौल, घनश्यामपुर, कीरतपुर, गौरा-बौरम, कुशेश्वरस्थान, कुशेश्वरस्थान (पूर्व) अछि।
प्रमुख नदी - एहिठाम के प्रमुख नदी कमला, बागमती, कोशी, करेह आर अधवारा अछि।

पर्यटन स्थल -

दरभंगा राज परिसर एवं किला - दरभंगाक महाराज सब के कला, साहित्य आ संस्कृति के संरक्षक के रूप में गिनल जाय ये। स्वर्गीय महेश ठाकुर के द्वारा स्थापित दरभंगा राज किला-परिसर आब एकटा आधुनिक पर्यटक स्थल आ शिक्षा के केंद्र बनि चुकल ये। विशाल, भव्य, आ वाश्तुकला के शानदार नमूना से बनल एतोका महल आ मंदिर अखनो धैर प्राचीन काल के कला के कहानी कहैत ये। भिन्न-भिन्न महाराज के बनायल महल में नरगौना महल, आनंदबाग महल आ बेला महल मुख्य ये। राज के पुस्तकालय आ ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय आ कैकटा आरो दोसर दोसर महल संस्कृत विश्वविद्यालय के लेल उपयोग में लैल जाए रहल ये।

महाराजा लक्ष्मिश्वर सिंह संग्रहालय  -   १६  सितम्बर १९७७ में दरभंगा के तत्कालीन जिलाधिकारी एही संग्रहालय के स्थापना केलखिन। एहिठाम अहाँक प्राचीन आ दुर्लभ कलाकृति के विशाल संग्रह भेटत। सोम दिन टा के छोडि के सप्ताह के हरेक दिन एही संग्रहालय खुलैत ये जाही में प्रवेश निः शुल्क अछि।

चंद्रधारी संग्रहालय - रंती-ड्योढी (मधुबनी) के स्वर्गीय चंद्रधारी सिंह के दान करल गेल कलात्मक आ दुर्लभ वस्तु के दरभंगा शहर के मानसरोवर झील के कात ७ दिसंबर १९५७ के एकटा संग्रहालय में राखल गेल। एहिठाम अहाँक के हाथी दाँत, सोना आ चाँदी के बनल हथियार आ दरभंगा महाराज के अद्भुत प्राचीन निशानी देखय ले भेटत। एही संग्रहालय के दुर्लभ वस्तु सब के ओकर उपयोग के अनुसार ११ टा कमरा में राखल गेल ये। ई संग्रहालय में प्रवेश निःशुल्क अछि।

श्यामा मंदिर - दरभंगा स्टेशन से करीब १ किलोमीटर दूर पर बसल मिथिला विश्वविद्यालय के अंगना में बनल एही मंदिर कला के अद्भुत नमूना अछि। सन १९३३ ईस्वी में एही काली मंदिर के दरभंगा के राजा बनोलक रहे। एही मंदिर के निर्माण दरभंगा राज परिवार के निजी कब्रिस्तान पर काएल गेल ये। एतोका लोग में एही मंदिर के बड़ आस्था अछि कहल जाय ये एता पूजा केने से अहाँक मनोवांछित फल भेटत।

होली रोजरी चर्च - 
दरभंगा रेलवे स्टेशन से १ किलोमीटर उत्तर में स्थित एही चर्च इसाई पादरी के प्रसिक्षण के लेल बनल रहे। १८९७ में आयल भूकंप से एही चर्च के काफी नुकसान पहुंचल छल आ जाही लेल एही में प्रार्थना सेहो बंद भए गेल रहे, बाद में एकर पुनर्निर्माण भेल आ २५ दिसंबर१९९१ से एही चर्च में पुनः प्रार्थना शुरू भए गेल। चर्च के बाहर ईसा मसीह के एकटा प्रतिमा सेहो बनल छल जे बहुत ही मोहक आ करुणामय लागय छल। एही जगह हरेक साल ७ अक्टूबर के एकटा विशाल मेला के आयोजन सेहो होए अछि जे आनंद मेला के नाम से प्रसिद्ध ये।

मस्जिद एवं मकदूम बाबा की मजार-  दरभंगा रेलवे स्टेशन से २ किलोमीटर दूर दरभंगा टावर के पास बनल मस्जिद शहर के मुसलमान के लेल सबसे पैघ पूजा के स्थल अछि। एइ के पास एकटा सूफी संत मकदूम बाबा के मजार सेहो छल जे हिन्दू आ मुसलमान दुनु के लेल आदरणीय अछि। शुक्र दिन एहिठाम अहाँ भरी संख्या में भीड़ देखि सके छी।

भीख सलामी मजार - दरभंगा रेलवे स्टेशन से १ किलोमीटर दूर गंगासागर के किनार पर बसल एही मजार मुसलमान आ हिन्दू दुनु के लेल आस्था के प्रतीक अछि। रमजान के दिन एही ठाम १२ से १६ दिन के विशाल मेला लगय ये।

कंकाली मंदिर - दरभंगा रेलवे स्टेशन से दू किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित ई मंदिर दरभंगा महाराज के किला में क्षेत्र में बनल ये। खास कए के ई मंदिर शक्ति आ सिद्धि से जुडल लोग के लेल ये।

मनोकामना मंदिर - विश्विद्यालय परिसर के ठीक पाछा बनल एही मंदिर नौरंग पेलेस में ये। संगमरमर से बनल एही मंदिर में छोट मुदा अद्भुत आ अतुलनीय भगवान् बजरंगबली के मूर्ति स्थापित अछि। मंगल दिन एता बेसी भीड़ रहय ये।

सती स्थान - दरभंगा महाराज पुल से एक किलोमीटर पश्चिम में बनल ई स्थान एकटा सम्शान में स्थित अछि। महाराजा रामेश्वर सिंह जे खुद भी एकटा पैघ तांत्रिक रहे रोज राति के ओ एहिठाम तंत्र सिद्धि ले जाए रहे। एहिठाम पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा के पिताजी हिरानंदन मिश्रा के समाधी सेहो अछि। लोग हरेक शुक्र आ सोम दिन एही ठाम पूजा पाठ लए आबए ये।

नवादा दुर्गा स्थान - मजकोरा नवादा रोड पर बसल एही मंदिर में दुर्गा जी के विशाल प्रतिमा अवस्थित ये। हरेक दिन एही मंदिर में कम से कम सौ टा लोग जरुर आबय ये दुर्गा पूजा में एही जगह के रौनक देखय बला रहय ये।

नेवारी - रैल से १३ किलोमीटर दूर ई जगह राज लोरिक के प्राचीन किला के लेल प्रसिद्द अछि।

महिमा महादेव स्थान छपरार - दरभंगा से १० किलोमीटर दूर ई जगह कमला नदी के कात में बसल ये। एता कमला नदी के कात में एकटा शिव मंदिर बनल ये जतय कातिक आ माघ महिना में बड़ा जबरदस्त मेला लगय ये।

कुशेश्वरस्थान शिवमंदिर एवं पक्षी विहार - समस्तीपुर-खगड़िया रेललाईन पर हसनपुर रोड से २२ किलोमीटर दूर कुशेश्वर स्थान अछि जतय रामायण काल के एकटा शिव-मंदिर सेहो छल। एही मंदिर हिन्दू के आस्था के प्रतीक अछि। कुशेश्वर स्थान के आस-पास ७०१९ एकड़ जलप्लावित क्षेत्र के वन्यजीव सरंक्षण अधिनियम के तहत पक्षी अभ्यारण घोषित कए देल गेल ये। एही क्षेत्र में स्थानीय पक्षी के संगे साईबेरियाई, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, आ अफगानिस्तान जैसन पडोसी देश के पक्षी के तादात बहुत बेसी छल। एही जगह मुख्य रूप से ललसर, दिघौच, माइल, नकटा, गैरी, गगन, अधानी, हरियल, चाहा, करन, रतवा, गैबर जैसन पक्षी एता देखि सकय छी, मुदा आब पक्षी के अवैध तस्करी आ शिकार के कारण आब एकर संख्या काफी घटल ये। एही ठाम के अहाँक के कैकटा एहन पक्षी देखाय जाएत जे अंतर्राष्ट्रीय पक्षी संरक्षण निदेशालय के अनुसार पूरा विश्व में काफी कम अछि।

अहिल्यास्थान  -  जाले प्रखंड में कमतौल रेलवे स्टेशन से ३ किलोमीटर दक्षिण में स्थित ई स्थान त्रेता युग के निशानी थीक। कहल जाय ये की अयोध्या जाय के काल में भगवान् श्रीराम पत्थर से बनल शापग्रस्त अहिल्या के उद्धार एही स्थान पर कैलक रहे। हरेक साल रामनवमी (चैत) आ विवाह पंचमी ( अगहन) के एता जबरदस्त मेला लागय ये जाही में रामलीला के साथ साथ कैकटा अन्य प्रकार नाटक के आयोजन होए ये।

गौतमस्थान -  कमतौल से ७ किलोमीटर दूर ब्रह्मपुर के गौतम ऋषि के स्थान मानल जाए ये। एही ठाम गौतम सरोवर आ संगे एकटा मंदिर सेहो बनल अछि। संगे ब्रह्मपुर गाम खादी के लेल भी काफी प्रसिद्ध अछि एही ठाम अहाँ विभिन्न तरह के खादी के वस्त्र किनी सकय छी।

मरकंडा - मैनगाछी रेलवे स्टेशन से ५ किलोमीटर दक्षिण में बसल एही गाम एकटा प्राचीन मंदिर के लेल प्रसिद्ध अछि जकर नाम बानेश्वरनाथ अछि।

मिथिला दर्शन भाग - २

सीतामढी

बिहार के तिरहुत प्रमंडल में बसल सीतामढ़ी मिथिला के एकटा पैघ शहर आ जिला सेहो थीक।११ दिसम्बर १९७२ में मुजफ्फरपुर से अलग भाए के ई एकटा स्वतंत्र जिला बनल।
बिहार के उत्तर आ गंगा के मैदानी भाग में बसल एही जिला नेपाल के सीमा से सटल अछि। जगत जननी मैया सीता के जन्मस्थली एही जिला अछि। एतोका मुख्य भाषा बज्जिका अछि मुदा हिंदी आ उर्दू भी प्रमुखता से बाजल जाय ये। एतोका संस्कृति के झलक रामायण में सेहो भेटत अछि।

इतिहास -

एही जिला के स्थान हिन्दू धर्म में बहुत ऊँच अछि। त्राता जुग में राजा जनक के बेटी आ भगवान् राम के अर्धांगिनी देवी सीता के जन्म एही जिला के पुनौरा गाम में भेल रहे। एहन कहल जाय ये की सीता जी के जन्म स्थल पर हुनकर वियाह के बाद राजा जनक  भगवान् राम आ सीता जी के मूर्ति लगाउल रहे। करीब पाँच सौ साल पहिने अयोध्या के एकटा संत बीरबल दास एही मूर्ति के खोजलक जकर बाद नियमित रूप से एकर पूजा पाठ शुरू भेल। एही स्थान आय जानकी कुंड के नाम से जानल जाए ये।

भूगोल -

गंगाक उत्तरी मैदान में बसल सीतामढ़ी जिला के समुन्द्रतल से औसत ऊंचाई लगभग ६७ मीटर अछि। २२९४ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल बला एही जिला के सीमा नेपाल से सटल ये। अंतरराष्ट्रीय सीमा के कुल लम्बाई १० किलोमीटर अछि। एकर दक्षिण में मुजफ्फरपुर, पशिम में पूर्वी चंपारण, आ पूरब में शिवहर,दरभंगा आ मधुबनी जिला अछि। खूब उपजाऊ आ समतल जमीन रहलो के कारण ई बिहार आ भारत के एकटा पिछड़ा जिला अछि कियाकि हरेक साल एकरा भंयंकर बाढ़ के त्रासदी के झेलय पड़य ये। सीतामढ़ी में औसत वर्षा ११०० मिलीमीटर से १३०० मिलीमीटर तक होए ये आ औसत तापमान ३२ से ४१ डिग्री तक होए ये।

जनसंख्या आ शिक्षा -

२०११ के जनगणना के अनुसार एही जिला के जनसँख्या २६६९८८७ अछि जे राज्य के कुल जनसँख्या के ३.२२% अछि। साक्षरता के दर एता मात्र ३८.४६% अछि।

प्रशासनिक विभाग -

सीतामढ़ी में तीन टा अनुमंडल, १७ टा प्रखंड आ १७ टा राजस्व सर्किल ये। सीतामढ़ी नगर परिषद् के अलावा एही जिला में ४ टा नगर पंचायत अछि। जिला के २७३  पंचायत में ८३५ टा गाम अछि।
अनुमंडल - सीतामढ़ी सदर, पुपरी, आ बेलसंड
प्रखंड -  बथनाहा, परिहार, नानपुर, बाजपट्टी, बैरगनिया, बेलसंड, रीगा, सुरसंड, पुपरी, सोनबरसा, डुमरा, रुन्नी सैदपुर, मेजरगंज, पुरनिया, सुप्पी, परसौनी, बोखरा, आ चौरौत अछि
प्रमुख नदी - बागमती, लखनदेई आ अधवारा समूह प्रमुख अछि

पर्यटन स्थल -

जानकी मंदिर - सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन से डेढ़ किलोमीटर दूर बनल एही मंदिर जगत जननी मैया सीता के जन्म स्थल अछि, एही मंदिर के राजा जनक जे सीता के पिताजी रहथिन बनेलक रहे। एही मंदिर में भगवान् राम के संगे माता सीता आ लक्ष्मण के मूर्ति सेहो ये। जानकी मंदिर के नाम से प्रसिद्द एही मंदिर मिथिला ही नाञ मुदा समस्त भारत के लेल धार्मिक स्थान अछि

जानकी कुंड -  सीतामढ़ी से ५ किलोमीटर पश्चिम में पुनौरा गाम में बनल जानकी मंदिर में पश्चिम में एही कुंड ये कहल जाय ये की इन्द्र देव के खुश करय के लेल राजा जनक खुद अपन हाथ से हल चलेलक रहे जाहि काल में देवी सीता माटि में गड़ल भेटल रहे। जानकी मंदिर के साथ-साथ एही कुंड के बहुत महत्व अछि।

हलेश्वर स्थान -  जिला से ३ किलोमीटर उत्तर पश्चिम में बसल एही स्थान पर राजा जनक अपन पुत्रेष्टि यज्ञ के संपन्न केलाs के बाद एता शंकर भगवान् के एकटा मंदिर बनेलक रहे जे हलेश्वर स्थान के नाम से प्रसिद्ध अछि।

पंथ पाकड़ -  सीतामढ़ी जिला से ७ किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बहुत पुरान एकटा पाकैड़ के गाछ छल, कहल जाय ये की ई गाछ रामायण काल से एता ये। एहन मानल जाय ये की देवी सीता के जनकपुर से अयोध्या लाय जाय के काल में भगवान् राम हुनका पालकी से उतरि के एही गाछ के तोर में विश्राम के लेल रुकल रहे

बगही मठ -  सीतामढ़ी से ७ किलोमीटर उत्तर पश्चिम में बसल बगही मठ हिन्दू धर्म के पूजा-पाठ आ यज्ञ के लेल बहुत प्रसिद्ध अछि, एही मठ में १०८ टा कमरा बनल ये जे यज्ञ आ यजमान  के रहय के लेल बनाएल गेल ये।

देवकुली(ढेकुली) -  एहन मानल जाए ये की पांडव के पत्नी द्रोपदी के जन्म एही थम भेल रहे। सीतामढ़ी से १९ किलोमीटर पश्चिम में बसल ढेकुली गाम में एही लेल ते प्रसिद्ध छेबे करय संगे संग एही ठाम शंकर भगवान् के एकटा बहुताहिं प्राचीन मंदिर सेहो छल, महाशिवरात्रि के दिन एहिठाम बड़ा भयंकर मेला लगय ये।

बोधायन सर -  संस्कृत के महा व्य्करनाचर्या पाणिनी के गुरु महर्षि बोधायन एही ठाम बैसी की कैकटा काव्य के रचना केलेंन ये। लगभग ४० साल पहिने मिथिला के महान संत आ जगत गुरु महर्षि देवराहा बाबा एही ठाम एकटा बोधायन मंदिर के निर्माण कैलक रहे जाहि के बाद से एही जगह प्रसिद्ध भए गेल।

शुकेश्वर स्थान -  जिला से २६ किलोमीटर दूर एही जगह हिन्दू धर्म के महान संत सुखदेव मुनि के पूजा अर्चना के स्थान अछि। संगही एहिठाम शंकर भगवान् जे की शुकेश्वरनाथ कहाबै ये के विशाल मंदिर सेहो ये।

गोरौल शरीफ -  सीतामढ़ी से २६ किलोमीटर दूर ई जगह मुसलमान के लेल बिहार में बिहारशरीफ आ फुलवारीशरीफ के बाद सबसे बेसी लोकप्रिय आ पवित्र स्थल अछि। एही जगह में मुसलमान के एकटा पैघ पीर के मजार अछि, एही ठाम समस्त समुदाय के लोग अपन अपन मनोकामना लाय के जाय ये पूरा भए के आबय ये।

सभागाछी ससौला - सीतामढ़ी से २० किलोमीटर पश्चिम में बसल एही ठाम हरेक साल मैथिल ब्रह्मण से सम्मलेन होए ये, हरेक साल एही ठाम ब्राह्मण सबहक वियाह होए ये, कहल जाय ये की एहिठाम मिथिला के दूर दराज के क्षेत्र से ब्राह्मण लोकिन अपन वर आ कन्या के लए के आबय ये आ सामूहिक रूप से वियाह समपन्न करय ये।

पुपरी -   एहिठाम शंकर भगवान् के रूप बाबा नागेश्वर नाथ के मंदिर अछि, एहन कहल जाय ये की एही ठाम खुद भगवान् शंकर अपन नागेश्वर रूप में स्थपित भेल रहे।

मिथिला दर्शन भाग - १

सहरसा
मिथिला के उत्कृष्ठता के बढ़ाबै बला जिला छल "सहरसा" . मंडन मिश्र आ लक्ष्मी नाथ गोसाई के जन्म आ कर्म स्थल अछि ई जगह एकर स्थापना एक अप्रेल १९५४ कए काएल गेल । कोशी के पूर्वी हिस्सा में बसल एही जिला हरेक साल बिहार के शोक मानल जाय बला कोशी नदी के कोप के शिकार होए ले पड़य। प्रकृति के कोप कहियो आ की विधना केर रीत सहरसा के बनावट एहने की ई प्राकृतिक आपदा से हरदम ई जिला प्रभावित रहय अछि।

इतिहास -
पहिने सहरसा क्षेत्र अन्गुत्तरप कहाबै रहे आ उत्तर बिहार के प्रसिद्ध वैशाली जनपद के सीमा पर बसल रहे
। मगध साम्राज्य के काल में एही ठाम बौध के किछु चिन्ह भी भेटल ये। सहरसा जिला के बिराटपुर, बुधियागढ़ी, आ मठाई जेहन जगह पर बुद्ध चिन्ह भेटल ये । सातवी सदी में जखन आदि गुरु शंकराचार्य भारत भ्रमण पर निकलल रहे तखन ओ सहरसा जिला के महिषी गाम सेहो आएल रहे। कहल जाए ये की जखन आदि  गुरु शंकराचार्य ओतोका प्रसिद्ध विद्वान मंडन मिश्र जी के शास्त्रार्थ में हरा देलक तखन हुनकर पत्नी आ महा विदुषी "विदुषी भारती" शंकराचार्य के शास्त्रार्थ के लेल चुनौती देलक आ हुनका शास्त्रार्थ में पराजीत कए देलक

भूगोल -
सहरसा जिला कोशी प्रमंडल आ जिला के मुख्यालय अछि । एकर उत्तर में मधुबनी आ सुपौल, दक्षिण में खगड़िया, पूरब में मधेपुरा, आ पश्चिम में दरभंगा आ समस्तीपुर जिला बसल ये। जिला के क्षेत्रफल १,६६१.३वर्ग किलोमीटर येबिहार के शोक कहल जाय बला कोशी नदी एही ठाम से मुख्य रूप से गुजरै ये आ हरेक साल बाढ़ से भयंकर तबाही सेहो आनय ये

एहिठाम के मुख्य नदी ये - कोशी आ धेमरा
मुख्य शहरी क्षेत्र ये - सहरसा, सिमरी बख्तियारपुर, महिषी, सोनबरसा राज, सौरबाजार, आऔर नौहट्टा

जनसँख्या -
२०११ के जनगणना के अनुसार सहरसा जिला के जनसँख्या १५,०६,४१८ छल जाही में शहरी क्षेत्र आ देहाती क्षेत्र के जनसँख्या क्रमशः १,२४,०१५ आ १३,८२,४०३ छल।

प्रशाशनिक विभाग -
प्रशासनिक विभाजनः
सहरसा जिले के अंतर्गत २ अनुमंडल एवं १० प्रखंड अछि।
अनुमंडल - सहरसा सदर (७ प्रखंड) आ सिमरी बख्तियारपुर ( ३ प्रखंड)
सहरसा अनुमंडल में आबए बला प्रखंड - कहरा, सत्तर कटैया, सौर बाज़ार, पतरघट, महिषी, सोनबरसा राज, आ नौहट्टा।
सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडल में आबए बला प्रखंड - सिमरी बख्तियारपुर, सलखुआ, आ बनमा ईटहरी।

पर्यटन स्थल -

तारा स्थान (महिषी) - सहरसा से १६ किलोमीटर दूर महिषी गाम में बसल तारा स्थान प्राचीन काल से ही लोग सबहक श्रद्धा के केंद्र रहल ये। एहीठाम सती मूर्ति के रूप में एकटा यन्त्र पर स्थित ये। तंत्राचार्य के अनुसार महर्षि वसिष्ठ एही ठाम महाविद्या तारा के उपासना केलैन रहे जाही से प्रशन्न भए के माँ तारा एता विराजमान भेल। एहिठाम माँ तारा के संगे एकजटा आ नील सरस्वती के मूर्ति के सेहो पूजा होए ये।

मंडन-भारती स्थान (महिषी) -
महिषी प्रखंड में स्थित ई जगह  अद्वैतवाद  के सबसे पैघ प्रवर्त्तक शंकराचार्य आ मंडन मिश्र आऔर हुनकर पत्नी भारती के बीच होएल शास्त्रार्थ के गवाह अछि। कहल जाए ये की हिंदुत्व के स्थापना के लेल जगतगुरु शंकराचार्य भारत भ्रमण पर निकलल रहे जाही अभियान में ओ महिषी भी एला रहे जताs ओ शास्त्रार्थ में मंडन मिश्र के हराs देलक रहे तखन मंडन मिश्रक कनिया विदुषी भारती हुनका से ई कहि के हुनका से शास्त्रार्थ करलक जे कनिया ते पति के अर्धांगिनी होए ये मने आधा शारीर अखन ते अहन खाली आधा शारीर के हरेलों ये आब अहाँ हमरा से शास्त्रार्थ करू आ इतिहास गवाह ये एही शास्त्रार्थ में ओ विदुषी कन्या जगतगुरु शंकराचार्य के हराs देलक रहे।

सूर्य मंदिर (कन्दाहा) - बारहवी शताब्दी में राजा नरसिंह देव एही मंदिर के निर्माण करेलक रहे। मिथिला ही ना मुदा संपूर्ण बिहार आ भारत में एही मंदिर प्रशिद्ध  ये। सूर्य मंदिर में ग्रेनाईट के शिलालेख पर भगवान् सूर्य के मूर्ति ये जे सात घोड़ा से जुतल रथ में सवार ये। कहल जाए ये की एकटा क्रूर मुग़ल राजा कलापहाड़ एही मंदिर कए खंडित कए देलक रहे जकर बाद मिथिला में भगवान् आ प्रसिद्ध संत लक्ष्मी नाथ गोसाई एकर जीर्णोधार केलैन।

चंडिका स्थान (विराटपुर) - सोनबरसा ब्लाक में बसल बिराटपुर गाम माँ चंडी के बहुत ही प्राचीन मंदिर के लेल प्रसिद्ध अछि। एही गाम महाभारत काल के राजा बिराट के नाम के साथ जुड़ल अछि। कहल जाए ये की निर्वासन के काल में पांडव एहीठाम बारह बरस तक रहल छल। तांत्रिक आ वैदिक लोग सबहक मतानुसार धमहरा घाट के कात्यायनी मंदिर आ महिषी के तारा मंदिर के साथ एकटा समबाहु त्रिभुज बनाबै ये जे की सिद्धि के लेल अति महत्वपूर्ण अछि। नवरात्र में एहिठाम के महत्व बेसी भए जाय ये एते एही समय बिजली देवी के पूजा होए ये। कारु खिरहरी मंदिर - कोशी नदी के तट पर बसल करू खिरहरी मंदिर मिथिला के लेल एकटा भयंकर आस्था के प्रतीक अछि। कहल जाए ये की गाय के प्रति ओकर अगाध प्रेम आ आस्था के लेल हुनका शंकर भगवान् से देवत्व प्राप्त भए गेल रहे ताहि लेल करू खिरहर के गाय के दूध चढ़य ये। महिषी ब्लाक से दू किलोमीटर दूर महपुरा गाम के कोशी के तटबंध पर हिनकर मंदिर अवस्थित ये। मुदा आब हाल में ही बिहार सरकार भी करू खिरखरी मंदिर के एतिहासिक पर्यटक स्थल बनाबै के घोषणा करलखिन ये।
लक्ष्मीनाथ गोंसाई स्थल (बनगाँव) - मिथिला के एकटा महान कवी आ महान संत लक्ष्मीनाथ गोंसाई के अवशेष के एकटा बोड गाछ के पास सरंक्षित काएल गेल ये। हिनक महिमा से आय बनगांव दिन दूना राति चौगुना तरक्की कए रहल ये। एक से एक पैघ आइ.आई.टी. आई.एस आ आई.पी.एस एही गाम मिथिला के देलक ये। मिथिला के लेल ई बहुत ही पैघ आश्था के प्रतीक अछि।
देवन वन शिव मंदिर - नौहट्टा ब्लाक के साहपुर मंझौल में स्थित एही मंदिर में एकटा शिवलिंग स्थापित अछि। कहल जाय ये की एही शिवलिंग के स्थापना १०० इशापुर्व में महाराजा शालिवाहन केलैन रहे। एही जगह के वर्णन श्री पुराण में भी भेटल ये। मिथिला के प्रमुख पावनि-त्यौहार में जितिया के बाद पैघ स्थान अछि कहल जाय ये की महाराजा शालिवाहन के बेटा के नाम जितिया रहे जाही से लोग एही पर्व के मनाबै अछि। प्राचीन समय में देवन वन कोशी के प्रकोप के कारण टूटी गेल रहे जकरा बाद में ग्रामीण सब ओ बचल अवशेष पर नबका मंदिर ठार करलक।
शिव मंदिर(नौहट्टा) - जिला के नौहट्टा प्रखंड में स्थित शिव मंदिर आस्था के महान संगम अछि एही मंदिर के उंचाई ८० फीट छल।१९३४ में आएल भूकंप के कारण ई मंदिर क्षतिग्रस्त भए गेल रहे जकरा बाद में श्रीनगर एस्टेट के राजा श्रीनानंद सिंह जी एकर पुनर्निर्माण कैलक रहे। संगे संग एही गाम माधो सिंह के कब्र के लेल भी प्रसिद्द अछि, माधो सिंह लादरी घाट के लड़ाई में शहीद भए गेल रहे जकर याद में एही कब्र के निर्माण भेल, एही कब्र पर हिन्दू आर मुशलमान दुनु गोटे प्रसाद चढ़ाबै अछि।
दुर्गा मंदिर (उदाही) - जिला के कहरा गाम में स्थित एही मंदिर के मिथिला के लेल खास महत्व अछि। कहल जाय ये की एही गाम के सोन लाल झा के साक्षात् दुर्गा जी स्वपन में दर्शन देलक आ एही जगह के खुदाई के लेल कहलक, खुदाई के क्रम में दुर्गा जी के विशाल आ सुन्दर प्रतिमा भेटल जकरा गाम बला सब स्थापित कए के मंदिर के निर्माण कए देलक। दूर दूर से गाम से लोग एही मंदिर के दर्शन लेल आबय ये। कहल जाय ये की एही मंदिर में दुर्गा देवी सबहक मनोकामना पूर्ण करय ये ।

मतस्यगंधा मंदिर (सहरसा) - सहरसा जिला में बंजर आ पानी से भरल रहय बला जगह में पर्यटन के लेल विकशित कराल गेल जकर नाम मत्स्यगंधा भेल। एही जगह पर माँ काली के एकटा भव्य मंदिर अछि जकरा रक्त काली के नाम से जानल जाय ये, एही ठाम मिश्र के पिरामिड के जोंका एकटा मंदिर बनल ये जाही में दुर्गा के ६४ रूप के मूर्ति अवस्थित अछि एकरा चौसठ योगिनी के नाम से जानल जाय ये, मान्यता के अनुसार कोलकाता के बाद दोसर चौसठ योगिनी एही ठाम ये। बिहार सरकार भी पर्यटन के लेल एकरा विकसित कए रहल ये जाही योजना के एता एकटा पैघ टूरिस्ट काम्प्लेक्स बनेलक ये।